हमें चाहने वालों की कभी कमी ना रही,
कभी आसमां ना रहा कभी जमीं ना रही।
मैं दर्द छिपाकर मुस्कुराता रहा सदा ,
लोगों को शिकायत कि मेरी आँखों में नमी ना रही।
मेरी चाहते थे सलामती तो खुश रहते वो ,
मगर मैं हंसा तो उनके लबों पे हँसीं ना रही।
मेरे अंदाज अलग हैं और मैं इन ही में खुश हूँ,
चाहे किसी को मुझसे शिकायत रही रही या ना रही।
“प्रवेश”
कभी आसमां ना रहा कभी जमीं ना रही।
मैं दर्द छिपाकर मुस्कुराता रहा सदा ,
लोगों को शिकायत कि मेरी आँखों में नमी ना रही।
मेरी चाहते थे सलामती तो खुश रहते वो ,
मगर मैं हंसा तो उनके लबों पे हँसीं ना रही।
मेरे अंदाज अलग हैं और मैं इन ही में खुश हूँ,
चाहे किसी को मुझसे शिकायत रही रही या ना रही।
“प्रवेश”
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