उस दिन अरसे बाद जो तू मिली
रिश्तों पर जमी धूल को
आँखों से फूँक फूँक कर
हटा रहा था मैं
आँखों से गर्म लावा सा बहता रहा
मानों वर्षों से फफोले पड़े हों आँखों में
तेरा वो आख़िरी सवाल
जिसे मैं हँस कर टाल गया था
वहीं अटका हूँ अब तक
ज़िंदगी के शहर में
तुम्हारा जो मकान था
क्या तुम अब भी उसे किराये पर देते हो ?
रिश्तों पर जमी धूल को
आँखों से फूँक फूँक कर
हटा रहा था मैं
आँखों से गर्म लावा सा बहता रहा
मानों वर्षों से फफोले पड़े हों आँखों में
तेरा वो आख़िरी सवाल
जिसे मैं हँस कर टाल गया था
वहीं अटका हूँ अब तक
ज़िंदगी के शहर में
तुम्हारा जो मकान था
क्या तुम अब भी उसे किराये पर देते हो ?
No comments:
Post a Comment