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21 Jun 2015

बचपन से ही एक चाहत है मेरी- Hindi Poem Latest


बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
पूरे आस्मा  में भरता रहू मै उर्रान,
छा जाऊ दुनिया पर ,
और सब कर ले मेरी पहचान.
हो जाए मेरी पहचान थोरी अलग ,
जमाने की इस भीर से.
चाहत यही कर रहे हर वखत ,
हम अपनी तकदीर से.
देगी तकदीर मेरा साथ ,
ये खुदा अगर इजाजत हो तेरी.
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
चाहत थी कि कुछ लोगो को ,
रख सकू अपने दिल के पास,
वो भी दे दे साथ मेरा,
ऐसी थी मेरी आस.
पर उन्होंने समझा मुझे 1 खिलौना ,
और मेरा ही दिल तोर चले.
कुछ हुए सहर से begaana ,
to kuch duniyaa ही chhor chale.
in सब से भी to ,
aatma aahat है मेरी.
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी.
अब मैंने भी यह ठाना है,
जमाने से दूर सपनो का घर बसाना है,
जहा रहू केवल मै और जो मेरे lakchya का ठिकाना है,
पाकर अपना lakchya दुनिया को दिखाना है.
lakchhya को पाना ही तो आदत है मेरी,
बचपन से ही एक चाहत है मेरी,
आस्मा के पार भी नजाकत हो मेरी

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