एक
बार बाल कृष्ण गौशाला के पास खेल रहे थे.गौशाला में गोपी गाय का गोवर तसले
में भरकर बार-बार ले जा रही थी क्योकि गोवर से उपले बनाते है और उसी पर
फिर रसोई बनती है.
गोपी बाल कृष्ण से बोली - कन्हैया! नेक मेरो ये तसला सिर पर रखवाय दे.
कन्हैया – अरी गोपी! मै काय धरवाऊ, तू आप से रख ले. एक तो मेरी शिकायत मैईया से करती है.और काम भी करवाती है.
गोपी बोली –देख लाला! तोसे ऐसे ही काम न लूँगी बदले में माखन का लौना भी तो दूँगी. गोपी गोवर रखकर फिर आई.जो माखन की बात बाल कृष्ण ने सुनी तो झट से पास आ गए और बोले अच्छा गोपी बदले में माखन देगी फिर बता तेरा गोवर का पात्र सिर पर उठवा देता हूँ.और बाल कृष्ण ने गोवर का पात्र गोपी के सिर पर रखवा दिया.गोपी गोवर रखकर फिर आई.
कृष्ण बोले –गोपी! अब माखन का लौना दे
गोपी बोली –अरे लाला ! अभी तो तुमने एक ही बार रखवाया है. अभी तो बहुत बार रखना है. कृष्ण बोले - अच्छा गोपी! फिर हर बार का एक माखन का लौना लूँगा.
गोपी बोली -ठीक है. अब चार-पाँच बार रखवाया, फिर बोले देख पाँच बार हो गया.
गोपी बोली -चार बार ही हुआ है कृष्ण झूठ क्यों बोलते हो.
कृष्ण बोले - देख गोपी! ऐसे काम नहीं चलेगा.
तब गोपी बोली -अच्छा लाला ! ऐसा करते है कि जितने बार तू रखवाएगा हर बार गोवर की एक टिपकी तेरे माथे पर रख दिया करुँगी, कृष्ण बोले - ठीक है.
अब जब भगवान एक बार उठवाते तो गोपी गोवर से कृष्ण के माथे पर एक टिपकी रख देती ऐसा करते-करते बहुत बार हो गया और कृष्ण का सारा चेहरा गोवर की टिपकियो से भर गया.और अंत में सारी टिपकी आपस में मिल गई.और अंत में
कृष्ण बोले - गोपी अब टिपकी गिनकर उतने मुझे माखन के लौने दे.
गोपी बोली –लाला तेरे माथे पर तो कोई टिपकी नहीं है अब कैसे गिनू ?
कृष्ण बोले देख गोपी –तूने ही देने का कहा था और टिपकियाँ भी तूने ही रखी.अब देने की बारी आई तो टालने लगी.गोपी बोली कान्हा जब टिपकी है ही नहीं तो गिनूँगी कैसे?बाल कृष्ण बोले वो सब मुझे नहीं पता मुझे तो बस गिनकर माखन के लौने दे दे.
तब गोपी कृष्ण की ऐसी बात सुनकर जितनी बार कृष्ण ने गोवर का पात्र उठवाया था उतने ही माखन के लौने कृष्ण जी दे दिए.इस तरह बाल कृष्ण और गोपियों की ये प्रेम भरी लीलाये चलती रहती थी.वास्तव में वे भगवान जिनके लिए स्वयं ब्रह्मा विष्णु, महेश,आदि देवता हाथ बंधे खड़े रहते है जो भ्रकुटी मात्र टेडी कर दे तो प्रलय आ जाए.जिन्हें श्रुतियाँ भी नेति नेति कहकर हार जाती है, नारद आदि ब्रह्वादियो ने भी जिनका पार नहीं पा सकते उन कृष्णा को गोपियाँ कैसे नाच नचाती है.
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
गोपी बाल कृष्ण से बोली - कन्हैया! नेक मेरो ये तसला सिर पर रखवाय दे.
कन्हैया – अरी गोपी! मै काय धरवाऊ, तू आप से रख ले. एक तो मेरी शिकायत मैईया से करती है.और काम भी करवाती है.
गोपी बोली –देख लाला! तोसे ऐसे ही काम न लूँगी बदले में माखन का लौना भी तो दूँगी. गोपी गोवर रखकर फिर आई.जो माखन की बात बाल कृष्ण ने सुनी तो झट से पास आ गए और बोले अच्छा गोपी बदले में माखन देगी फिर बता तेरा गोवर का पात्र सिर पर उठवा देता हूँ.और बाल कृष्ण ने गोवर का पात्र गोपी के सिर पर रखवा दिया.गोपी गोवर रखकर फिर आई.
कृष्ण बोले –गोपी! अब माखन का लौना दे
गोपी बोली –अरे लाला ! अभी तो तुमने एक ही बार रखवाया है. अभी तो बहुत बार रखना है. कृष्ण बोले - अच्छा गोपी! फिर हर बार का एक माखन का लौना लूँगा.
गोपी बोली -ठीक है. अब चार-पाँच बार रखवाया, फिर बोले देख पाँच बार हो गया.
गोपी बोली -चार बार ही हुआ है कृष्ण झूठ क्यों बोलते हो.
कृष्ण बोले - देख गोपी! ऐसे काम नहीं चलेगा.
तब गोपी बोली -अच्छा लाला ! ऐसा करते है कि जितने बार तू रखवाएगा हर बार गोवर की एक टिपकी तेरे माथे पर रख दिया करुँगी, कृष्ण बोले - ठीक है.
अब जब भगवान एक बार उठवाते तो गोपी गोवर से कृष्ण के माथे पर एक टिपकी रख देती ऐसा करते-करते बहुत बार हो गया और कृष्ण का सारा चेहरा गोवर की टिपकियो से भर गया.और अंत में सारी टिपकी आपस में मिल गई.और अंत में
कृष्ण बोले - गोपी अब टिपकी गिनकर उतने मुझे माखन के लौने दे.
गोपी बोली –लाला तेरे माथे पर तो कोई टिपकी नहीं है अब कैसे गिनू ?
कृष्ण बोले देख गोपी –तूने ही देने का कहा था और टिपकियाँ भी तूने ही रखी.अब देने की बारी आई तो टालने लगी.गोपी बोली कान्हा जब टिपकी है ही नहीं तो गिनूँगी कैसे?बाल कृष्ण बोले वो सब मुझे नहीं पता मुझे तो बस गिनकर माखन के लौने दे दे.
तब गोपी कृष्ण की ऐसी बात सुनकर जितनी बार कृष्ण ने गोवर का पात्र उठवाया था उतने ही माखन के लौने कृष्ण जी दे दिए.इस तरह बाल कृष्ण और गोपियों की ये प्रेम भरी लीलाये चलती रहती थी.वास्तव में वे भगवान जिनके लिए स्वयं ब्रह्मा विष्णु, महेश,आदि देवता हाथ बंधे खड़े रहते है जो भ्रकुटी मात्र टेडी कर दे तो प्रलय आ जाए.जिन्हें श्रुतियाँ भी नेति नेति कहकर हार जाती है, नारद आदि ब्रह्वादियो ने भी जिनका पार नहीं पा सकते उन कृष्णा को गोपियाँ कैसे नाच नचाती है.
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
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