प्यार की महिमा अपरंपार है। जहां प्यार है वहां सब कुछ माफ। प्यार किया
तो डरना क्या। वाकई प्यार व्यक्ति को बहुत ताकतवर और अति आत्मविश्वासी बना
देता है।
सृष्टि के इस महत्वपूर्ण शब्द प्यार में इतनी ताकत है कि ये दुनिया के सभी जायज और नाजायज कार्यों को कराने की शक्ति अपने हाथ में रखता है। प्यार में मरने वालों को दुनिया हमेशा-हमेशा तक याद रखती है। लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, के किस्से कहानियों को पढ़ते-पढ़ते सालों गुजर गए और गुजर जाएंगे।
प्यार नामक इस चिड़िया को समझना कोई आसान नहीं है, जिसे होता है, वही इसके मर्म को समझ सकता है। कहते है ना ‘खुद के मरे सरग दीखै’ यह कोई करने की चीज नहीं है, यह तो स्वमेव ही होता है। जान बूझकर किया गया प्यार, प्यार नहीं होता। जिसे होता है वही इस विचित्र सागर में डुबकी लगाता है। अंदर उसे क्या दिखाई दे रहा है, वह किसमें मस्त है, सागर के किनारे खड़ा व्यक्ति कभी इसका अंदाजा नहीं लगा पाता।
प्यार मुर्दे में भी जान फूंक देता है वही कमजोर को भी हिम्मत वाला बना देता है और इसी हिम्मत की बदौलत ही तो प्यार करने वाले फकीर के लिए कहा जाता है-
‘हिम्मत-ऐ मर्दा, मदद-ऐ खुदा, बादशाह की लड़की का, फकीर से निकाह’
प्यार में इतनी ताकत कहां से आ जाती है, यह प्रारंभ से ही शोध का विषय रहा है। मनोविश्लेषकों ने विभिन्न अनुसंधानों द्वारा निष्कर्ष निकाला कि यह दिमाग से नहीं दिल से होता है। जिसमें दिमाग होता है वह प्यार कर नहीं सकता, यदि वह करता है तो सिर्फ करने का नाटक करता है। प्यार के मध्य यदि कोई रुकावट डालता है तो वह सिर्फ दिमाग ही डालता है। यही सबसे बड़ा रोड़ा है।
जिससे प्यार होना होता है उसे देखकर प्रेमी के दिल में घंटी सी बजने लगती है। दिल में से किसी विशेष प्रकार के पदार्थ का स्त्राव होने लगता है। यह विशेष प्रकार का स्त्रावित पदार्थ व्यक्ति के दिमाग का दिल से नियंत्रण धीरे-धीरे समाप्त करता चला जाता है और उसे सही मायने में प्यार हो जाता है। प्यार होने के बाद प्रेमी दिमाग की सुनना पूरी तरह बंद कर देता है। धीरे-धीरे व्यक्ति का दिमाग भी दिल को संदेश देना बंद कर देता है, यही प्यार है।
सृष्टि के इस महत्वपूर्ण शब्द प्यार में इतनी ताकत है कि ये दुनिया के सभी जायज और नाजायज कार्यों को कराने की शक्ति अपने हाथ में रखता है। प्यार में मरने वालों को दुनिया हमेशा-हमेशा तक याद रखती है। लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, के किस्से कहानियों को पढ़ते-पढ़ते सालों गुजर गए और गुजर जाएंगे।
प्यार नामक इस चिड़िया को समझना कोई आसान नहीं है, जिसे होता है, वही इसके मर्म को समझ सकता है। कहते है ना ‘खुद के मरे सरग दीखै’ यह कोई करने की चीज नहीं है, यह तो स्वमेव ही होता है। जान बूझकर किया गया प्यार, प्यार नहीं होता। जिसे होता है वही इस विचित्र सागर में डुबकी लगाता है। अंदर उसे क्या दिखाई दे रहा है, वह किसमें मस्त है, सागर के किनारे खड़ा व्यक्ति कभी इसका अंदाजा नहीं लगा पाता।
प्यार मुर्दे में भी जान फूंक देता है वही कमजोर को भी हिम्मत वाला बना देता है और इसी हिम्मत की बदौलत ही तो प्यार करने वाले फकीर के लिए कहा जाता है-
‘हिम्मत-ऐ मर्दा, मदद-ऐ खुदा, बादशाह की लड़की का, फकीर से निकाह’
प्यार में इतनी ताकत कहां से आ जाती है, यह प्रारंभ से ही शोध का विषय रहा है। मनोविश्लेषकों ने विभिन्न अनुसंधानों द्वारा निष्कर्ष निकाला कि यह दिमाग से नहीं दिल से होता है। जिसमें दिमाग होता है वह प्यार कर नहीं सकता, यदि वह करता है तो सिर्फ करने का नाटक करता है। प्यार के मध्य यदि कोई रुकावट डालता है तो वह सिर्फ दिमाग ही डालता है। यही सबसे बड़ा रोड़ा है।
जिससे प्यार होना होता है उसे देखकर प्रेमी के दिल में घंटी सी बजने लगती है। दिल में से किसी विशेष प्रकार के पदार्थ का स्त्राव होने लगता है। यह विशेष प्रकार का स्त्रावित पदार्थ व्यक्ति के दिमाग का दिल से नियंत्रण धीरे-धीरे समाप्त करता चला जाता है और उसे सही मायने में प्यार हो जाता है। प्यार होने के बाद प्रेमी दिमाग की सुनना पूरी तरह बंद कर देता है। धीरे-धीरे व्यक्ति का दिमाग भी दिल को संदेश देना बंद कर देता है, यही प्यार है।
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