"बाहो में चाहे कोई भी आये..जो नशीब में लिखा होगा",मगर..
"महसूस तो सिर्फ वही होगा..जो रूह में समाया होगा".
Nasaa sarab ka ho ya mohabbat ka,
Hos dono me kho jata hai,
Fark bas itna hai dost,
Sarab sula deti hai aur mohabbat rula deti hai......
में तो चिराग हू तेरे आशियाने का
कभी ना कभी तो बुझ जाऊंगा …
आज शिकायत है तुझे मेरे उजाले से
कल अँधेरे में बहुत याद आऊंगा
रात गुमसुम हैं मगर चाँद खामोश नहीं,
कैसे कह दूँ फिर आज मुझे होश नहीं,
ऐसे डूबा तेरी आँखों के गहराई में आज,
हाथ में जाम हैं,मगर पीने का होश नहीं,
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